Friday, October 28, 2016

प्यारु गढ़देश....



रौंत्याळु मुल्क हमारु,
डांडी कांठ्यौं कू देश,
छट्ट छुटिगी क्या बतौण,
प्यारु गढ़देश.....

पैटि थौ परदेश कू,
खूब कमौलु पैंसि,
होणि खाणि खूब होलि,
मन बिचारु हैंसि.....

भला लग्दा छन हे,
बल दूर का ढ़ोल,
अति बित्दि मन मा जब,
बंद ह्रवै जान्दा बोल....

परदेश की जिंदगी,
भलि कतै नि होन्दि,
ढुंगू बण्युं रन्दु मनखि,
जिंदगी रुवौन्दि.....

मयाळु मन सोच्दु छ,
मैंन पहाड़ जाण,
अपणा मुल्क की,
नखरि भलि खाण.....

स्याणि रन्दि छन सदानि,
होयिं रन्दि गाणी,
भौत याद औन्दु छ,
छोया ढुंगौं कू पाणी....

परदेश की जिंदगी मा,
भारी होन्दा जंजाळ,
मन पिथेन्दु परदेश मा,
भाग्दु छ गढ़वाळ.....

ज्वानि जळि जान्दि छ,
बुढ़ापु ऐ जान्दु,
मोती ढांगू बणि मनखि,
अध बाटा रै जान्दु....

परदेश बिटि पाड़,
मनखि जै नि सक्दु,
ज्यू जंजाळ मा फंसिक,
गढ़देश रटदु.....

मन इच्छा होन्दि छ,
जौलु गढ़देश,
ज्यु जिबाळ जिंदगी मा,
कतै नि होन्दि ठैस.....

कथ्गै मनखि जै नि सक्दा,
फूक उड़ि जान्दि,
मन की बात मन मा,
दगड़ा चलि जान्दि......
दिनांक 15.6.2016

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