Friday, October 28, 2016

बसगाळ लग्युं छ.....



सुण हे बेटा, हमारा मुल्क,
थथराट मच्युं छ,
गाड गदन्यौं मा भारी,
सुंस्याट मच्युं छ...

कखि सड़क टूटिं बेटा,
रगड़ा भगड़ि होयिं,
पण बज्र बरखणा छन,
भारी डौर होयिं....

कूड़ा पुंगड़ा अर मनखि,
कै जगा बगिग्यन,
डौर लगणि छ भारी,
दिन रात डन्नु मन....

कख लगौण छ्वीं बेटा,
ये बसगाळ की,
भारी दुर्गति होयिं छ,
कुमौं गढ़वाळ की.....

जिंदगी पहाड़ की,
औखि होयिं छ भारी,
रड़दा पाखा डरौणा छन,
होयिं छ भारी लाचारी.....

बग्दु पाणी धौळ्यौं कू,
ऊत्पात छ मचौणु,
पहाड़ का मनख्यौं तैं,
दिन रात छ डरौणु.....

हमारा पहाड़ मा,
बसगाळ लग्युं छ,
कख लगौण छ्वीं,
मन भी डरयुं छ.......
दिनांक 20.7.2016

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