Wednesday, February 24, 2016

“बण कू बानु”

 “बण कू बानु”
बण जाण कू बानू बणैक,
पौछिन ब्वारी  बजार,
जलेबी, चौमिन खूब छकिन,
खित खित हैंसिन हपार.
बीच बाजार मां मौळुन देखि,
गंवाड़्या ब्वारियौं की घिमसाण,
मौळु देखिक सब्बि अफुमा,
लगिं छन खुबसाण.
मौळुन बोलि, डरा न ब्वारियौं,
झट पट जावा घौर,
मैं नि बतौलु, गौं मां कै तैं,
रखा न मन मां डौर.
सब्बि ब्वारियौंन मौळुन जी तैं,
खटै मिठै खलाई,
घौर मू कुछ नि बोल्यां हेजि,
घोटी घोटिक समझाई.
सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिग्यांसु”
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(1.4.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७ 

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल