Wednesday, February 24, 2016

“घत्त”

“घत्त”

धुर्पला कु द्वार टूटी,
भ्वीं मा पड़ी भत्त,
मरदु मरदु बचिगीयों मैं,
यनु आई घत्त,
यनु आई घत्त,यनु आई घत्त…..

मुख फ़रौ कू खाणों छोड़ी,
लोग ऐन झट्ट,
कनुकै बचें हे चुचा तू,
कनु आई घत्त,
कनु आई घत्त, कनु आई घत्त…..

मैन बताई अज्जों भी छ,
देव भूमि मा सत्त,
उन्की कृपा सी बचिग्यों मैं,
यनु आई घत्त,
यनु आई घत्त, यनु आई घत्त…

सच बोन्नी छें हे लठयाळा,
अज्जों भी छ सत्त,
भूलिग्यों हम धर्म कर्म,
कन्न लग्यां छौं खत्,
कन्न लग्यां छौं खत्, कन्न लग्यां छौं खत्….

भला बुरा भी ऐन मैमु,
ज्युकड़ी उन्की धक्क,
हे लठयाळा बचिगें तू,
जनु भी आई घत्त,
जनु भी आई घत्त,जनु भी आई घत्त….

टुटयाँ धुर्पला देखिक,
मेरा आँखा ह्वेन फट्ट,
कुल देवतों कू ख्याल मैकू,
तब आई झट्ट,
तब आई झट्ट,तब आई झट्ट….

जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
७.९.२००७ को रचित
 

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