Wednesday, February 24, 2016

“एक उत्तराखंडी की पाती तुमारा नौं”

“एक उत्तराखंडी की पाती तुमारा नौं”
प्यारा दिदा, भुल्लौं,
छोड़ कूड़ी बांजा डाळ के,
हमन सोचि क्या रख्युं छ,
वे पापी पाड़ मां,
जख गाळ घात लग्दि,
अर् पूजेंदा छन,
जख,
हैंकारी जैंकारी देवता,
विश्वास करदा छन,
झूठा बाक्यों फर,
तब कच्योन्दा छन,
बेला, बोगठ्या,बाखरा,
भौ भल्यारी का खातिर.
अपणा पाड़,
तब जांदा छन आप,
जब पित्र पूजिक,
पठाळ लगौन्दा छैं,
पित्र कूड़ा फर,
अर् यत् तब जब,
देवता, गाळ-घात पूजण,
जब बुरी बित्दि परदेश मां.
नरेन्द्र कठैत जी बोन्ना छन,
गौं वाळौं कू,
“जै दिन तुम गौं छोड़ कै सैर में गये थे 
तिस दिन बि तुमनें इनी बोला था,
कि पाड़ में सुबिधा नै है,
पर सैरमा ऐ के तुमनें क्य फरकाया,
सैरमा ऐकी बि तुम गौं पर चिब्ट्यां राया,
साक भुज्जी से लेकी चुन्नू झंगर्याळ तक,
गौं बिटि मेटिमाटि लाया,
अल्लू तुमनें गौंमा बि थींचा,
अर सैरमा बि थींचता है,
गौं का प्याज तुमनें मीट्ठू नै चिताया,
अर सैर के पिर्रा प्याज ने,
तुमको घड़िघड़ि रुलाया,
अब तुमी जबाब देवो,
तुमनें सैर में क्य फरपाया”?
मेरा समझ मां,
त एक बात आई,
सौ प्रतिशत सच छ,
कुल मिलैक,
जू कठैत जी न बताई.
जगमोहन सिंह जयाडा “जिग्यांसू”
19.2.2009 को रचित
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
(सर्वाधिकार सुरक्षित

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