Wednesday, February 24, 2016

ब्वोडि गै मकरैणी का मेळा.....

“बोडी बैठि बस मा”  मेरि एक यनि रचना छ जू मकरैणी का मेळा पर आधारित छ.  अतीत मा उत्तराखंड का लोग पंचमी, मकरैणी का मेला देवप्रयाग, ढ़ुंडप्रयाग,श्रीनगर, व्यासचट्टी , नहेण जांदा था.  गौं गौं बिटि लोग पैदल चलिक या बस सी मेळा जांदा था.  यूं मेळौं फर उत्तराखंड का कवियों का सुंदर पारंपरिक गीत भी लिख्याँ छन. भुलौं मैकु आज याद औन्दि यूं मेळौं की, पर क्या कन्न बौळ्या  बन्णिक लिखणु छौं मन का उमाल.  

ब्वोडि  गै मकरैणी का मेळा, वींन खैन जलेबि केळा,
घुम्दु घुम्दु ख्याल आई, वीन दग्ड़्यौं तैं बताई....

चला अब घौर जौला, देर ह्वेगि क्या बतौला,
सब्बि डगड़्या बस मूं गैन्, सीट निथै खड़ू ह्वेन.....

ब्वोडिन नज़र दौड़ाई, सीट एक खाली पाई,
क्वी नि बैठ्युं यीं मा क्योकु, सैत खाली रखिं मैकु.....

ब्वोडि वख मूं बैठि ग्याई, एक घेरी जलेबी खाई,
तबर्रयौं डरेबर दिदा आई, सीट म्येरी वेन बताई....

ब्वोडि ब्वोन्नि हाथ जोड़दु, तेरु रिवाज आज तोड़दु,
मेरी सुण तू पिछनै बैठ, मैं दगड़ि सुदि नी ऐंठ.....

डरेबर ब्वोन्नु क्या बतौण, मैंन हि या बस चलौण,
हाथ जोड़दु बोल्युं माण, ब्वोडि त्वेन घौर नि जाण......

तबर्यौं नौनु  एक भट्याई, ब्वोडि यख मूं बैठ बताई,
ब्वोडि भीड़ मा भभसेणी, मन ही मन मा गाली देणी....

ब्वोडि बैठि खिड़की फर,  निन्द ऐगि वीं तैं सर्र,
ब्वोडि देखि डगड़्या हैंसणि, ब्वोडि कन्नि खर खर....

बस गौं जथैं जाणी, सब्बि अफुमा छ्वीं लगाणी,
सुपिना मा द्येखा ब्वोडि, एक घेरी जलेबी खाणी....

दगड़्यौंन ब्वोडि घल्काई, खड़ु उठ यनु बताई,
घौर हमारू अब ऐगि, एक फलांग सिर्प रैगि......

घौर हम्तैं जागणा छन, सड़की फुंड भागना छन,
अगल्या साल फिर जौला, चूड़ी, मछली,फोंदणी ल्हौला.....



जगमोहन सिंह जयाडा जिज्ञासू
२७-६-२००६ को रचित


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