Wednesday, February 24, 2016

“पहाड़ की पगडंडियाँ”

“पहाड़ की पगडंडियाँ”

सड़कों के बनने से,
सिकुड़ती जा रही हैं,
पहाड़ की पथरीली पगडंडियाँ,
जो जोड़ती थी पहाड़ को,
ढाकर और तराई भाभर तक.

आज भी ये पगडंडियाँ,
ले जाती हैं पर्यटकों को,
नदी घाटियों के किनारे,
जहाँ दिखती है,
नदियों की अविरल बहती धारा,
चमकती चांदी की तरह,
रंग बिरंगे फूलों की छटा,
कूदते फाँदते पक्षी,
पहाड़ी वन्य जीवों की हल चल.

ऊँचाई पर,
चीड़, देवदार, खर्सू, मोरू, बुरांश,
मनोहारी पहाड़ी ढलान,
पानी से भरे ताल,
जिनमें दिखती है,
हिमालय पर्वत की छाया,
छोटे-छोटे पहाड़ी गावं,
झर झर झरते झरनें,
जो छायाकार को,
आकर्षित कर देते हैं,
कैमरा निकालकर,
छायांकन के लिए.

फूलों की घाटी, बेदनी बुग्याल,
हरकी दून, केदारनाथ, गौमुख,
अगर जाना हो तो,
आज भी आपको,
पहुंचायेंगी “पहाड़ की पगडंडियाँ”

(सर्वाधिकार सुरक्षित,उद्धरण, प्रकाशन के लिए कवि की अनुमति लेना वांछनीय है)
जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिग्यांसु”
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
निवास:संगम विहार,नई दिल्ली
(30.3.2009 को रचित)
दूरभाष: ९८६८७९५१८७

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