Wednesday, February 24, 2016

“काली रात का कहर”

 “काली रात का कहर”
कहर ढा गया,
नींद की सुनहरी गोद में,
बेखबर सोये लोगों पर,
होने वाली भोर से पहले,
20 अक्टूबर,1991  की रात को,
आया प्रलयकारी भूकम्प,
जिसका केन्द्र था,
उत्तराखंड राज्य का,
उत्तरकाशी जिल्ले का,
जामक गाँव.
उस भयानक रात के बाद,
शुरू हुई एक नई सुबह,
लेकिन दिख रहा था,
मौत का मंजर,
करुणा, विलाप और क्रंदन,
दहाड़ मार कर रोते लोग,
खँडहर हुए घरों में,
दबे और दम तोड़ते लोग.
मदद के लिए उठे हाथ,
जिन्होंने देखी और निकाली,
दबी हुई लाशें,
पिचकी हुई लाशें,
कतरा-कतरा हुई लाशें,
बेमौत मरे लोगों की.
शमशान घाटों पर,
शुरू हुआ सैलाब,
सामुहिक जलती लाशों का,
जो उनकी थी,
जो आयी थी अपने मायका,
जो आए थे छुट्टी पर,
जो थे बचपन की दहलीज पर,
जो थे जवानी के जज्बे में,
जो थे आखरी पड़ाव पर,
जिन्हें था अपनी जन्म-भूमि से,
बेहद प्यार,
लेकिन उनकी चिता से,
उठते धुँए के गुब्बार में,
मिले उनके सपनें,
ओझल हो रहे थे,
उस काली रात के,
कहर के कारण.
रचनाकार:
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
16.1.2009  

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