Wednesday, February 24, 2016

“ऋतु बंसंत”

“ऋतु बंसंत”

ऋतु बसंत बौड़िक एगि,
मैनि लगिं छ चैत की,
पाख्यौं मां फ्योंली,
मुल मुल हैंसणी,
खुद लगिं छ मैत की……..

दण मण आंसू,
आंख्यौं मां औणा,
खुदेड़ मैनि चैत की,
निर्मैत्या नौनी अफुमा रोंणी,
खुद लगिं छ मैत की……..

प्यारी घुघती घुराण लगिं,
याद औणि छ मैत की,
आरू घिंगारू अब फूलिगिन,
उलारया मैंनी चैत की……..

कौथगेर मैनु बैशाख आलु,
जाली भग्यानी मैत,
बंणु मां बुरांस,
बंणाग लगाणा,
मैनि लगिं छ चैत…….

डांडी कांठ्यौं मां,
अयुं मौळ्यार,
डाळ्यौं मां खिल्यां फूल,
पापी बसंत,
न दुखौ मैकु,
त्वैन जाण छ न भूल…….

स्वरचित:
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
२९.१.2009
     

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