Wednesday, February 24, 2016

“हे चुचा ढुंगा न बोल” …..

एक लंगोट्या यार बोन्न बैठि, ढुगां सरख्या मनख्यों फर भित लिख कुछ भैजि “जिग्यांसू”.  मैन बोलि वैकु
“हे चुचा ढुंगा न बोल” …..

 “हे चुचा ढुगां न बोल” …..

अपणु एक लंगोट्या यार, बोन्न बैठि,
भैजि “जिग्यांसू”,
आपन सब्बि धाणी फर लिख्यलि,
जरा ढुगां सरख्या मन्ख्यौं फर भि लिखा,
किलै नि लिखि, अजौं तक?

मेरा मुख बीटि छट छुटि,
हे लाठ्याळा यनु न बोल,
मन्ख्यौं सी गुणवान छन,
मुख्याळा अर् प्यारा ढुगां.

यार फिर बोन्न बैठि,
यनु कनुकै ह्वै सकदु,
ढुगां जैं कुंगळा होन्दा,
ता स्याळ भूखा किलै मरदा.

तब मैं बोलि सुण,
ढ़ुगौं मां छन बड़ा गुण….

चार धाम, पञ्च बद्री, पञ्च केदार,
पित्र कूड़ा, कूड़ी भांडी, पैरि पगार,
जान्दरी, ऊख्ल्यरि,डांडी कांठी,   
घट्ट, देवतों का मंडुला, छान,
यथ्गा कि टीरी कू डाम,
सब ढुगौं का बणयां छन,
क्य, मन्ख्यौं फर छन यना गुण.

जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
24.2.2009  को रचित
दूरभाष: ९८६८७९५१८७

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