Wednesday, February 24, 2016

“आस औलाद”

“आस औलाद” सब्यों तैं प्यारी होन्दि छ…ब्वै बाब खौरि भि खान्दा छन औलाद का खातिर…..आज का दौर मां कथ्गा सार्थक छ ” औलाद मां आस रखणु” ……

    “आस औलाद”

कथ्गा प्यारी होन्दि सब्यौं तैं,
अर् रन्दि छ आस,
हरेक मनखी का मन मां,
जैका बना ऊ,
दुनियां का जंजाळ,
गौळा लगौन्दु,
यनु सोचिक,
औलाद कू सारु मिललु,
अर् सकून देलु,
बुढ़ेन्दि बग्त,
सूखिं लाठी की तरौं.

संस्कारी औलाद जरूर,
आस पूरी करलि,
पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रेम मां रन्गि,
वर्तमान पीढ़ी, क्या सार्थक होलि,
“आस औलाद” का परिपेक्ष मां.

जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
21.2.2009  को रचित
दूरभाष: ९८६८७९५१८७

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