Wednesday, February 24, 2016

“मोळु दीदा कु ब्यो”

“मोळु दीदा कु ब्यो”

मोळु दीदा कु ब्यो छ आज,
ब्वै वेकी राग्र्याणि,
नौना नहोंण कु वक्त ह्वैगी,
बेटी ब्वारी ल्य्होंणी पांणी.

ओजणी शुभ मांगल लगाणी,
ओउजी बजौणा ढोल,
खोजा खोजि मचिं छ गौं मा, 
मोळु ह्वैगी गोळ.

ढैपुरा बैठी मोळु बिचारू,
स्वाळा पकोड़ा खाणु,
बोल्या बणिक बुबाजी वैकु,
मोळु मोळु भटयाणु.

बुबजी की बाच सुणिक मोळु,
सरक भ्वीं मा आई,
ब्योला बणैदि बामण दादा,
वैन यनु बताई.

ब्योला बणिक मोळु दीदान,
जब भात खाई,
पांणी का लोठ्या फर वैका,
दगड़यौन दारू मिलाई.

नशा मा मोळु बोन्न लग्युं छ,
आज केकु ब्यौ छ,
हाथ मा पकोड़ी पकड़ीक बोन्नु,
देखा हे दगड़यौ स्यो छ.

जगमोहन सिंह जयादा, जिग्यांसू 
११.७.२००८ को रचित 

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