Wednesday, February 24, 2016

“अनुभूति”

कवि तो कवि होता है… सोच लेता है “भौंकुछ” …तुमारी नजर मां…. पर यू ही होण….जू कि कविता मां लिख्युं छ…अनुभूति का रूप मां….

“अनुभूति”

अपनी कलम से,
कालजयी रचनाएँ लिखकर,
काल को कैद करने वाला,
कवि एक दिन अचानक,
गिर पड़ा धरती पर,
बेजान होकर.

लेखनी लिखती थी उनके,
मन के भाव समझ कर,
छूट गई हाथों से,
जो कि है बेखबर.

शोक में डूबे परिजन,
आँखों में अश्रु की धारा,
कवि मित्र अर्थी को उनकी,
दे रहे कंधे का सहारा.

शमशान में चिता सजी,
धधक उठि जलती ज्वाला,
पंचतत्व में विलीन हुए,
सूनी हुई “कविशाला”  

जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसू
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टेहरी गढ़वाल-२४९१२२
2.3.2009  को रचित
दूरभाष: ९८६८७९५१८७

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