Thursday, February 4, 2016

बचपन का दिन.....


जख हैंसि खेलि बचपन बिति,
वा कूड़ी ह्वैगि आज खंड्वार,
परदेश की जिंदगी जीणु छौं,
बदलिं बदलिं मेरी अन्‍वार......

मन नि बदलि झणि किलै,
मन मा औन्‍दा छन विचार,
प्रवास की जिंदगी होयिं छ,
घर कूड़ी सी आज भि प्‍यार....

जब तक था ब्‍वे बाब प्‍यारा,
चौक मा गोरु भैंसा राम्‍दा था,
चेचेंडा, गोदड़ौं की लब्द्यारि,
ओण बिचारा थाम्‍दा था.....

बुबाजी कू ह्वक्का गुड़ गुड़ान्‍दु,
खुन्टेलि मा मनखि बैठ्दा था,
छ्वीं लगौन्‍दा बानि बानि की,
हम टक्‍क लगैक पढ़दा था.....

बोल्‍दि थै ब्‍वै बुबा जी कू,
तुम दिन भर कछड़ि सजौन्‍दा,
धाण काज तख्‍खि पड़िं छ,
बग्‍त फर नि निब्‍टौन्‍दा....

घर कूड़ी का आज अग्‍वाड़ि,
गुलाब का फूल हि हैंस्‍दा छन,
जान्‍दु छौं जब गौं मैं अपणा,
स्‍वागत मेरु करदा छन.......


दिनांक 5.1.2016

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