Wednesday, February 24, 2016

“शादी”

 “शादी”
याद करा वे वक्त तैं,
जबरी ह्वै थै शादी,
ब्योलि मन मां खुश होंणी थै,
शुरू ह्वै थै बरबादी…..
पंडितजिन वे दिन जब,
बेदी मां करवै था फेरा,
बुरा दिन वे दिन बीटी,
शुरू ह्वैगे था मेरा…….
छकि-छकिक रोंणी थै ब्योलि,
लाल डोला मां बैठि,
ढोल दमौं था बजण लग्यां,
बारात जब वापिस पैटि……
घराती बाराती खुश होयां था,
खाणि पेणि खैक,
ब्वै का मन भारी खुशी थै,
नौना कु ब्वारी ल्हेक………
कुछ दिन मां ब्वैन बोलि,
कनु लड़िक बिगड़ी मेरु ब्वारी ल्हेकी,
बस मां अब हमारा निछ,
अब मति भि मरिगी तैकी……..
कुट्मदारी भौं कबरी मै फर,
अब जब किल्ल किल्कौंदी,
क्या बतौण हे मेरा दग्ड़यौं,
ब्यो का दिन की याद भि औन्दि…..
अब सुण्दु छौं मैं सब्यों की,
कंदुड़ बंद करी बौग मारिक,
हाड्ग्यों कु बणयुं सेळु,
अब थकि हारिक……….
जू मैं यनु जाणदु भुलौं,
ब्यौ करिक यना हाल होण,
नि करदु ब्यौ कतै ना,
कपालि पकड़ीक  भी रोण…… 
स्वरचित:
जगमोहन सिंह जयाड़ा, जिग्यांसु
२९.१.2009
     

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल